कभी-कभी एक फिल्म सिर्फ़ परदे पर दिखाई जाने वाली कहानी नहीं होती, बल्कि समाज की आवाज़ भी बन जाती है। शाजिया इक़बाल की डेब्यू फिल्म Dhadak 2 भी ऐसी ही कोशिश है, जहां एक दलित युवक और उच्च जाति की लड़की की प्रेमकहानी के साथ-साथ हमारे समय की राजनीति और असली जज़्बात भी सामने आते हैं।
यह फिल्म तमिल सिनेमा की चर्चित फिल्म परियेरुम पेरुमल का हिंदी रूपांतरण है, लेकिन शाजिया ने इसमें कई नई परतें जोड़ी हैं। सिद्धांत चतुर्वेदी और तृप्ति डिमरी इसमें मुख्य किरदार निभा रहे हैं, मगर कहानी केवल इनके प्रेम तक सिमटी नहीं है। निर्देशक ने इसमें कॉलेज जीवन, छात्र राजनीति और सामाजिक असमानताओं को बेहद सशक्त तरीके से शामिल किया है।
Dhadak 2 कॉलेज का मायना और राजनीति की परतें
शाजिया इक़बाल ने बातचीत में कहा कि जब उन्होंने मूल फिल्म देखी तो महसूस हुआ कि इसकी दुनिया और बड़ी हो सकती है। उनके लिए कॉलेज केवल पढ़ाई की जगह नहीं, बल्कि समाज से जुड़ने और अपनी आवाज़ उठाने का सबसे अहम पड़ाव है। उन्होंने कहा कि रंग दे बसंती जैसी फिल्में आजकल मुख्यधारा से गायब हो गई हैं, जबकि कॉलेज पॉलिटिक्स और युवाओं की सोच को सिनेमा में जगह मिलनी चाहिए।
Dhadak 2 की शुरुआत में ही यह पहलू साफ नज़र आता है, जब निलेश का पिता उसे चेतावनी देता है कि कॉलेज में लोग उसे पढ़ने नहीं देंगे। यह डर वास्तविक है और उस दर्द को उजागर करता है जिससे दलित समुदाय का बड़ा हिस्सा गुज़रता है। शाजिया मानती हैं कि कॉलेज की राजनीति को लेकर हिंदी सिनेमा में लंबे समय से खामोशी रही है, जबकि इसमें कहने के लिए बहुत कुछ है।
शेखर का किरदार और राजनीतिक संदेश

Dhadak 2 का सबसे अहम किरदार प्रियांक तिवारी द्वारा निभाया गया शेखर है, जो एक छात्र नेता और एक्टिविस्ट है। उसके ज़रिए फिल्म यह दिखाती है कि व्यक्तिगत संघर्ष कैसे सामूहिक आंदोलन से जुड़ता है। शेखर की मौत के बाद भी उसका संघर्ष खत्म नहीं होता, बल्कि वह निलेश को ताक़त देकर आगे बढ़ाता है। शाजिया के शब्दों में, “पर्सनल ही पॉलिटिकल है” और फिल्म इसी सोच को उजागर करती है।
शेखर की कहानी सीधे तौर पर हमें उस दर्द और प्रतिरोध की याद दिलाती है, जिसे हम समाज में हर रोज़ देखते हैं। उसकी शहादत यह कहती है कि भले ही एक इंसान चला जाए, लेकिन उसका मुद्दा और उसकी लड़ाई ज़िंदा रहती है।
रोहित वेमुला को श्रद्धांजलि
Dhadak 2 का एक और बड़ा पहलू है कि यह सीधे तौर पर रोहित वेमुला को श्रद्धांजलि देती है। 2016 में हुई पीएचडी स्कॉलर रोहित वेमुला की आत्महत्या ने पूरे देश को हिला दिया था और जातीय भेदभाव के खिलाफ़ आवाज़ बुलंद की थी। शाजिया ने साफ कहा कि यह श्रद्धांजलि छिपी नहीं, बल्कि बेहद स्पष्ट है। उनके मुताबिक़, “कौन हो सकता है रोहित वेमुला से बेहतर, जिसे हम अपनी फिल्म में जगह देकर सलाम करें।” यह कदम दर्शाता है कि धड़क 2 सिर्फ़ प्रेमकहानी नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव और सवाल उठाने की कोशिश भी है।
दर्शकों तक पहुँचने वाली सच्चाई

शाजिया ने यह भी बताया कि एक दलित दर्शक ने उन्हें कहा कि उन्होंने पहली बार खुद को बड़े परदे पर एक हिंदी फिल्म में देखा है। यह अनुभव निर्देशक के लिए तीन साल की मेहनत को सार्थक बना गया। यही वह पल है जब सिनेमा महज़ मनोरंजन नहीं रहता, बल्कि आईने की तरह समाज के सामने खड़ा हो जाता है। फिल्म में सिद्धांत और तृप्ति के साथ ज़ाकिर हुसैन, सौरभ साक्षदेवा, दीक्षा जोशी, विपिन शर्मा, साद बिलग्रामी और मंजीरी पुपाला जैसे कलाकार भी शामिल हैं, जिन्होंने कहानी को और गहराई दी है।
निष्कर्ष: Dhadak 2 केवल एक लव स्टोरी नहीं, बल्कि यह उन आवाज़ों का जश्न है जो अक्सर दबा दी जाती हैं। इसमें प्रेम है, प्रतिरोध है, और रोहित वेमुला जैसी शख्सियतों की याद भी। शाजिया इक़बाल ने इस फिल्म के ज़रिए साबित किया है कि अगर किसी मुद्दे को लेकर आपके दिल में सच्चा जज़्बा है, तो उसे मुख्यधारा तक ले जाना ज़रूरी है।
डिस्क्लेमर: इस लेख में प्रस्तुत सामग्री उपलब्ध जानकारी और निर्देशक के इंटरव्यू पर आधारित है। इसका उद्देश्य केवल जानकारी साझा करना और पाठकों तक फिल्म से जुड़े पहलुओं को पहुँचाना है।
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