मोहित सूरी की फिल्म Saiyaara एक बार फिर टूटे दिलों, ग़म और भूले-बिसरे प्यार की दास्तान कहती है। पढ़ें पूरी समीक्षा हिंदी में।
Saiyaara मूवी नहीं एहसास है
Saiyaara : कभी-कभी दिल को छू लेने वाली कहानियां वही होती हैं, जो हमने कई बार देखी और सुनी होती हैं, लेकिन फिर भी उनका असर कम नहीं होता। मोहित सूरी की नई फिल्म ‘सैयारा’ भी कुछ ऐसा ही अहसास देती है। एक और दुखभरी मोहब्बत की कहानी, जिसमें दो टूटे लोग एक-दूसरे में अपनी अधूरी कहानी पूरी करने की कोशिश करते हैं। फिल्म की शुरुआत होती है एक महत्वाकांक्षी सिंगर कृष (आहान पांडे) से, जो एक अधूरी कविता को धुन देने का प्रस्ताव लेकर एक उभरती लेखिका वाणी (अनीत पड्डा) के पास पहुंचता है। दोनों अजनबी होते हैं, लेकिन धीरे-धीरे एक ही दर्द में बंध जाते हैं। एक ओर कृष अपने शराबी पिता और अधूरे रिश्तों से जूझ रहा है, वहीं वाणी का अतीत उससे पीछा नहीं छोड़ता—उसकी सगाई टूट चुकी है और दिल टूटा है। एक गाना लिखते-लिखते दोनों के बीच एक भावनात्मक रिश्ता बनने लगता है।
मोहब्बत में उलझे किरदार और उनका गहराता दर्द

Saiyaara : मोहित सूरी की फिल्मों से जो उम्मीद रहती है, वही इस फिल्म में भी मिलती है-एक उदास नायक, एक गहराई में डूबी नायिका और दर्द में लिपटी मोहब्बत। कृष और वाणी की कहानी भी इसी पुराने ढांचे पर चलती है, पर फिर भी कुछ नया महसूस होता है। लेकिन जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ती है, वाणी की एक बात खटकती है-वो अपनी भूलने की आदत को डायरी में लिखने का ज़िक्र करती है। ये बात मामूली लगती है, लेकिन जल्द ही कहानी का सबसे बड़ा मोड़ बन जाती है।
जब मोहब्बत की यादें ही मिटने लगें

फिल्म का सबसे बड़ा झटका तब आता है जब वाणी को अर्ली ऑनसेट अल्जाइमर का पता चलता है। वो धीरे-धीरे अपनी यादें खोने लगती है, यहां तक कि कृष को भी पहचानना भूल जाती है। ये मोड़ फिल्म को इमोशनली गहरा बना देता है, लेकिन इसका चित्रण कई बार अति नाटकीय हो जाता है। कुछ दृश्य ऐसे हैं जो सच्चाई से ज़्यादा सिनेमाई लगते हैं, लेकिन फिर भी दिल को छू जाते हैं। दूसरे हाफ में कहानी की दिशा बदल जाती है। वाणी धीरे-धीरे सिर्फ खुद से ही नहीं, बल्कि फिल्म की कहानी से भी गायब होने लगती है। कृष का किरदार धीरे-धीरे केंद्र में आ जाता है, पर कहानी को ज़्यादा गहराई नहीं मिलती। कृष एक ज़िम्मेदार इंसान बन जाता है, लेकिन उसके किरदार का ग्रोथ कुछ अधूरा-सा लगता है।
भावनाओं से भरी लेकिन साहस से दूर

Saiyaara कई बार पुरानी फिल्मों की याद दिलाती है- आशिकी, हाफ गर्लफ्रेंड, एक विलेन-लेकिन फिर भी इसकी टोन थोड़ी ज्यादा नरम और भावुक है। इसमें वो कड़वाहट नहीं है जो सूरी की पिछली फिल्मों में थी, पर कुछ नया कहने का साहस भी नहीं। आहान पांडे अपने किरदार को ईमानदारी से निभाते हैं, और उनकी स्क्रीन प्रेजेंस प्रभावित करती है। अनीत पड्डा का किरदार थोड़े रहस्य में लिपटा रहता है, जो फिल्म को एक गूढ़ता देता है, लेकिन कभी-कभी उनका अभिनय थोड़ा सपाट भी लगता है।
निष्कर्ष: अधूरी मोहब्बत की एक और दास्तान
‘सैयारा’ दिल को छूने वाली एक भावुक फिल्म है, जो आपको कुछ देर के लिए उस प्यार की याद दिलाती है जिसे आप खो चुके हैं या जिसे आप पाने की कोशिश में हैं। लेकिन इस फिल्म में कुछ नया तलाशना मुश्किल है। ये उन दर्शकों के लिए है जो अब भी ग़म में डूबी लव स्टोरीज़ को दोहराते हुए देखना पसंद करते हैं।
डिस्क्लेमर: यह समीक्षा केवल लेखक के दृष्टिकोण पर आधारित है। फिल्म को लेकर आपकी राय भिन्न हो सकती है। दर्शकों को सलाह दी जाती है कि वे स्वयं फिल्म देखकर अपनी राय बनाएं।
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