Dhadak 2 Review : जाति पर खुलकर वार करती एक ताज़ा, झकझोर देने वाली फिल्म

Published On: August 3, 2025
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Dhadak 2, जब भी हम हिंदी फिल्मों में जातिगत भेदभाव की बात करते हैं, तो या तो यह मुद्दा सतही तरीके से छूकर निकल जाता है या फिर भाषणबाज़ी में डूब जाता है। लेकिन शाज़िया इक़बाल की Dhadak 2 इस ढर्रे को तोड़ती है।

यह फिल्म न केवल एक दलित छात्र की संघर्षभरी कहानी को संवेदनशीलता से दिखाती है, बल्कि इसे ऐसे अंदाज़ में प्रस्तुत करती है कि दर्शक भीतर तक हिल जाएं। यह कोई हल्की-फुल्की प्रेम कहानी नहीं, बल्कि एक ज़ख्मी सच्चाई का दस्तावेज़ है।

Dhadak 2 – जब सपनों की उड़ान छीन ली जाती है 

Dhadak 2
Dhadak 2 – Photo/X User

फिल्म का नायक नीलेश सिद्धांत चतुर्वेदी एक दलित परिवार से है और अपने घर का पहला व्यक्ति है जो लॉ कॉलेज में दाख़िला लेता है। वह इस उपलब्धि पर गर्व महसूस करता है, लेकिन जल्द ही यह गर्व सामाजिक ताने-बाने की सख्त दीवारों से टकरा जाता है। कॉलेज में उसका पहला दिन ही उसे एहसास दिला देता है कि वह एक अलग वर्ग से है। ‘कोटा’ शब्द उसके आत्मसम्मान को ठेस पहुँचाता है और एक प्रोफेसर का उस पर हंसना उसके भीतर की तकलीफ़ को और गहरा कर देता है। लेकिन नीलेश सब सहता है, क्योंकि उसने जन्म से यही सीखा है,सहना।

एक प्रेम कहानी जो समाज से टकराती है

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Dhadak 2 – Photo / X User

नीलेश की मुलाक़ात कॉलेज में विद्धि (त्रिप्ती डिमरी) से होती है। दोनों के बीच एक मासूम रिश्ता पनपता है। लेकिन यह रिश्ता सिर्फ़ दो दिलों का नहीं, दो जातियों, दो सोचों और दो भारतों का टकराव भी है। विद्धि के परिवार की गहरी जातिवादी सोच धीरे-धीरे उनके बीच दीवार बनती है। फिल्म इस प्रेम को सिर्फ़ रोमांस के नज़रिए से नहीं, बल्कि सामाजिक परिप्रेक्ष्य से देखती है, जो इसे और भी प्रभावशाली बनाता है।

फिल्म में जातिवाद को लेकर जबरदस्त सच्चाई

Dhadak 2 में एक सीन है, जहां नीलेश एक कानून से जुड़ी दुविधा को लेकर अपने मोहल्ले में चर्चा करता है। सवाल है: क्या ज़िंदा रहने के लिए एक-दूसरे को खा जाना अपराध है? जवाबों में से एक कहता है: “वे हमें नहीं खाएँगे।” यह गहरी बात एक व्यंग्य के तौर पर कही जाती है, लेकिन इसके पीछे वह सदियों पुराना दर्द और अनुभव है जो सिर्फ़ दलित समाज समझ सकता है। यह सीन और फिल्म की बाकी घटनाएं दिखाती हैं कि oppression से जूझ रहे लोग कैसे अपने दर्द को हास्य में भी बदल लेते हैं।

रोहित वेमुला की याद दिलाती है यह कहानी

Dhadak 2 में छात्रवृत्ति को लेकर छात्रों में बहस होती है। यह सीधे तौर पर रोहित वेमुला की कहानी से जुड़ती है-एक दलित पीएचडी छात्र जिसने 2016 में आत्महत्या कर ली थी। उसकी अंतिम चिट्ठी में उस छात्रवृत्ति की बात थी जो उसे सात महीनों से नहीं मिली थी। फिल्म की स्क्रिप्ट और टोन में रोहित की पीड़ा और उसकी लड़ाई की गूंज महसूस होती है। यह सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि एक सामाजिक बयान है।

निर्देशन और अभिनय में दम

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Dhadak 2 – Pic by X User

Dhadak 2 शाज़िया इक़बाल की पहली फीचर फिल्म है, लेकिन उन्होंने जिस तरह से फिल्म की संवेदनाओं को संतुलित रखा है, वह काबिल-ए-तारीफ़ है। हालांकि ‘परीयरुम पेरुमाल’ के मुकाबले नीलेश के समुदाय को उतनी जीवंतता नहीं मिलती, लेकिन जैसे-जैसे नीलेश पर ज़ुल्म बढ़ते हैं, फिल्म एक अलग तेवर पकड़ लेती है। सिद्धांत चतुर्वेदी का अभिनय उनके अब तक के सबसे गंभीर किरदारों में से एक है। उनकी आंखों में झलकती तकलीफ़ और शरीर की झुकी भाषा उनके किरदार को बेहद विश्वसनीय बनाती है।

क्यों ‘Dhadak 2’ नाम से विवाद?

फिल्म का सबसे बड़ा विवाद शायद इसके नाम को लेकर है। ‘धड़क’ 2018 में आई थी, जो कि ‘सैराट’ की कमजोर रीमेक मानी गई थी। ‘धड़क 2’ को उसी फ्रेंचाइज़ी में जोड़ना न केवल भ्रमित करता है, बल्कि यह जातीय पीड़ा जैसी गंभीर बात को मार्केटिंग ट्रिक में बदल देता है। यह नामकरण निर्णय शायद स्टूडियो (धर्मा प्रोडक्शंस) का हो, लेकिन फिल्म की आत्मा इससे बहुत आगे की चीज़ है।

एक विलेन जो कहानी से अलग चलते हुए भी असरदार है

Dhadak 2 में एक अनोखा कातिल है, जो बाकी कहानी से अलग चलता है और अंत में अपनी भूमिका निभाता है। यह किरदार, जिसे सौरभ सचदेवा ने निभाया है, आधुनिक भारतीय सिनेमा के सबसे रहस्यमयी खलनायकों में से एक बन जाता है। वह पैसे के लिए नहीं, बल्कि एक खास तरह के ‘टारगेट’ के लिए हत्या करता है। उसका ठंडा और शांत रवैया कहानी में एक अलग किस्म का तनाव जोड़ता है।

निष्कर्ष: ‘धड़क 2’ अपने तमाम प्रेरणा-स्रोतों और सीमाओं के बावजूद एक बहादुर फिल्म है। यह हिंदी सिनेमा में जातिवाद पर बनी हालिया फिल्मों से कहीं अधिक ईमानदार और असरदार है। इसे एक प्रेम कहानी के तौर पर मत देखिए, बल्कि एक समाज के आईने के रूप में देखिए—एक ऐसा आईना जो हमें हमारी असलियत से रूबरू कराता है।

Disclaimer : यह लेख केवल समीक्षा और सामाजिक समझ बढ़ाने के उद्देश्य से लिखा गया है। इसमें दी गई बातें लेखक के दृष्टिकोण पर आधारित हैं और किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचाने का उद्देश्य नहीं है।

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SATISH KUMAR

मेरा नाम सतीश कुमार है, टेक्नोलॉजी से जुड़ी जानकारी लिखना मेरा जुनून है। लोगों तक नए गैजेट्स, कारोबार की खबरें और मनोरंजन की जरूरी बातें आसान और भरोसेमंद अंदाज़ में पहुँचाना मेरा मकसद है ।

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